जब से मैं तेरे साज़ की चुप हूँ ।
तब से अपनी आवाज़ की चुप हूँ ।
मुझ को मालूम है कहाँ जाना ,
इस लिए हर आगाज़ की चुप हूँ ।
शब्द होते तो अर्थ मिल जाते ,
मैं तो उम्र-ए- दराज़ की चुप हूँ ।
तुम ने वादा कोई निभाया था ,
मैं तेरे उस लिहाज़ की चुप हूँ |
मैं ना सुकरात हूँ ना सरमद हूँ ,
मैं तो अपने ही राज़ की चुप हूँ ।
मैं तो 'जसबीर 'जीत पाया ना ,
इस लिए हर मुहाज़ की चुप हूँ।
तब से अपनी आवाज़ की चुप हूँ ।
मुझ को मालूम है कहाँ जाना ,
इस लिए हर आगाज़ की चुप हूँ ।
शब्द होते तो अर्थ मिल जाते ,
मैं तो उम्र-ए- दराज़ की चुप हूँ ।
तुम ने वादा कोई निभाया था ,
मैं तेरे उस लिहाज़ की चुप हूँ |
मैं ना सुकरात हूँ ना सरमद हूँ ,
मैं तो अपने ही राज़ की चुप हूँ ।
मैं तो 'जसबीर 'जीत पाया ना ,
इस लिए हर मुहाज़ की चुप हूँ।
No comments:
Post a Comment