Sunday, February 20, 2011

जब से समता 5

जब से मैं  तेरे साज़ की चुप हूँ ।
तब से अपनी आवाज़ की चुप हूँ ।

मुझ को मालूम है  कहाँ जाना ,
इस लिए हर आगाज़ की चुप हूँ ।

शब्द होते तो अर्थ मिल जाते ,
मैं तो उम्र-ए- दराज़ की चुप हूँ ।

तुम ने वादा कोई निभाया था ,
मैं तेरे उस लिहाज़ की चुप हूँ |

मैं ना सुकरात हूँ ना सरमद हूँ ,
मैं तो अपने ही राज़ की चुप हूँ ।

मैं तो 'जसबीर 'जीत पाया ना ,
इस लिए हर मुहाज़ की चुप हूँ।

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