Thursday, January 7, 2010

ख़त

कभी तो ख़त आयेगा
अनजाने सप्पनों के गठरी उठाऐ
और मेरे घर की दहलीज़ पे आकर
अपना बोझ गिराएगा
कभी तो ख़त आयेगा .....

तरह तरह के गीत सुनाएगा
कई भाषाओँ का जिकर करेगा
मेरे आँसूओं के रंगों से
अपना लिबास मिलाएगा
कभी तो ख़त आयेगा .....

अपनी होंद को जताकर
मेरे माथे पर उभर आये
प्रशन-चिन्हों की वियाख्या करेगा
बीते लम्हों को याद कराएगा
कभी तो ख़त आयेगा .....

कई यादें कई कहानीयां
पलों छिनो में बियान कर जाएगा
वकत की चरखरी से
उमर की डोर उतारेगा
कभी तो ख़त आयेगा .....

अनचाहे सपनों के गठरी उठाये ...