फलसफों की रोशनी में कुछ नज़र आया नहीं
इस घने जंगल से कोई रास्ता पाया नहीं
लोग कितने ढूढने निकले खलाओ में उसे
कोन वो रहता कहा कोई पता लाया नहीं
वो जो मेरे बोनेपन पे उम्र भर हँसता रहा
आदमी वो था मेरे अंदर मेरा साया नहीं
अब जहाँ दिल की जमी है जर्द पत्तों से भरी
इस जगह कोई बहारों की तरह आया नहीं
झूमते थे जो कभी अब है घरों की कैद में
अब किसी भी पेड़ का होता घना शाया नहीं
Saturday, March 28, 2009
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सून्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवो जो मेरे बोनेपन पे उम्र भर हँसता रहा
ReplyDeleteआदमी वो था मेरे अंदर मेरा साया नहीं
अब जहाँ दिल की जमी है जर्द पत्तों से भरी
इस जगह कोई बहारों की तरह आया नहीं
झूमते थे जो कभी अब है घरों की कैद में
अब किसी भी पेड़ का होता घना शाया नहीं
बहुत अच्छी लगी प्रस्तुति ..बधाई !!
सादर,
अमरेन्द्र