तुम ने मंजिल सोच ली हो रास्ता लाये कोई
किस तरह इस दोस्ती को छोड़ कर जाए कोई
तुम कभी बिरहा के सहरा में तो भटके ही नही
फिर भला तेरे लिए मल्हार क्यो गाये कोई
हमने अपने ही कहीं अंदर दबा दी आग सी
अब कहाँ उठता हुआ धुंआ नज़र आए कोई
मै भला पहचान पाऊँगा कहाँ चिहरा मेरा
अब अगर माजी से मुझको छीनकर लाये कोई
एक पल तेरा हो मेरा एक पल मेरा तेरा
ये न हो दो पल खड़े हो बीच आ जाए कोई
Saturday, March 14, 2009
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सुन्दर रचना..स्वागत है..
ReplyDeletesundar nahi behad bhavpurn, narayan narayan
ReplyDeletesir ji manjil to pa..aege hi par asi umeed naa thi .wah wah ji wah kya baat hai or bhi likhiye sir ji
ReplyDeleteआपके अन्य पोस्ट भी पढ़े। वाह! जसबीर जी। आपका स्वागत है। आपकी अन्य रचान्यें और पढ़ने को मिलेंगी, इसी आशा के साथ।
ReplyDeleteमेरे ख़याल से इस शेर में आप माझी नहीं माज़ी कहना चाह्ते थे।
मै भला पहचान पाऊँगा कहाँ चिहरा मेरा
अब अगर माझी से मुझको छीनकर लाये कोई