शब्दों के जंगल से गुजरे जब हवा जज़्बात की
तब कहानी याद आ जाए किसी बरसात की
एक ये दिन है के हम खामोश पत्थर की तरह
एक वो दिन बात से ही बात थी हर बात की
सारी दुनिया के अँधेरों को पहन कर मैं गया
पर मुझे मिलने नही आयी किरण प्रभात की
जुल्फें तेरी चिहरा तेरा यु भी ढकती हैं कभी
दो दिनों के बीच जैसे हो कहानी रात की
हम जिसे करना नही चाहते कभी भी याद अब
याद आती है बड़ी उस भूली बिसरी बात की
Sunday, April 5, 2009
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Jasveer ji,
ReplyDeleteapkee pooree gajal bahut umda hai ,lekin in panktiyon ne dil ko chhoo liya .
सारी दुनिया के अँधेरों को पहन कर मैं गया
पर मुझे मिलने नही आयी किरण प्रभात की
shubhkamnayen.
HemantKumar
जसवीर जी,बहुत बढिया गज़ल है।बधाई।
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