कागजों के फूल में क्या कुश खिला करता नही
रंगे-खुशबू इस तरह से पर मिला करता नही
जांनता हूँ अब सभी शब्दों के सीमत अर्थों को
अब किसी भी बात का तो मै गिला करता नही
बाँटने को बाँट लेते हैं मगर मुझ को पता
जिन्दगी का बोझ सर से यूं हिला करता नही
तुम दबा दारू करो या फिर दुआ दया करो
चाक हुआ पर जिगर फिर से सिला करता नही
अब जरूरत ही कहाँ रखें कबूतर घर मै हम
अब कोई चिट्ठी मिले या ना गिला करता नही
Saturday, March 14, 2009
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