जब भीतर
सूर्य उदय होता है
चेतना समय सीमा से
पार चली जाती है
मन के हर दरवाज़े से
नकली बोध
बाहर भागता है
जिसम उस वकत
पहली वार जागना सीखता है
द्वन्द थक हार कर
बैठ जाता है
तब हर शै जागती हुई
अपने आप में संयुकत
महसूस होती है
कहीं कोई बटवारा नही होता
एक सदीवी मौन
भीतर ही भीतर सीडियाँ
उतरता है ...
तब सब कुछ महज़
ख़ामोश सा हो जाता है
जब भीतर का सूर्य
चेतना के सिर पे होता है
Sunday, May 31, 2009
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Bahut hi sunder Jasbeer ji,
ReplyDeleteBheeter ka soorya jag jaye to baat hi kya hai..
Agar yah gyaan aa jaye
har shai sunahari ho
bahut hi sunder, sarthak rachna hai..bheeter utarne wali.
badhai!!
shailja