Saturday, May 16, 2009

जब से

जब से अपने सितारे गर्दिश में
तब से सारे सहारे गर्दिश में

मैं समुन्दर में इक समुन्दर हूँ
मेरे सारे किनारे गर्दिश में

याद वो उम्मर भर रहे मुझको
जो थे लम्हे गुजारे गर्दिश में

मेरे हिस्से ना कहकशा आया
घर की छत के नज़ारे गर्दिश में

दूर तक अब कोई नही दिखता
मैं ही मैं को पुकारे गर्दिश में

सब की आँखों पे खाक के परदे
कौन किसको निहारे गर्दिश में

1 comment:

  1. namaskar jasbeer bhai ,

    bahut hi acchi gazal hai ..
    padhkar maza aa gaya ..
    aapko badhai

    meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..

    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html


    aapka

    vijay

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