Sunday, June 7, 2009

वो मुझको पहनकर

वो मुझको पहनकर जब अपने घर को लौट जाते हैं
तो हर दीवार को आईना समझकर मुस्कराते हैं

बना डालें तेरी तस्वीर मिलकर एक दूजे से
वो तारे इस तरह भी रात को कुछ तिलमिलाते हैं

वो कैसे खोलें दरवाजे अगर चुपचाप हो दसतक
हवा की उँगलियाँ लेकर लुटेरे भी तो आते हैं

अभी हैं इस जगह ना जाने कल फिर किस जगह होंगे
कदम मेरे बिना मुझको लिए ही दौड़ जाते हैं

बसाया है मुझे आँखों में आँसू की तरह उसने
मुझे बस देखना वो कब मुझे मोती बनाते हैं

9 comments:

  1. lajawaab rachna.......aur pahla sher to jaan hai rachna ki.

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  2. बहुत बढ़िया ग़ज़ल है जसबीर जी -
    वो कैसे खोलें दरवाजे अगर चुपचाप हो दसतक
    हवा की उँगलियाँ लेकर लुटेरे भी तो आते हैं

    क्या बात कही है ! रचना का एक शेर एक शेर नगीने की तरह जड़ा है आपने -
    सुमन कुमार घई

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  3. वो कैसे खोलें दरवाजे अगर चुपचाप हो दसतक
    हवा की उँगलियाँ लेकर लुटेरे भी तो आते हैं

    अभी हैं इस जगह ना जाने कल फिर किस जगह होंगे
    कदम मेरे बिना मुझको लिए ही दौड़ जाते हैं

    बसाया है मुझे आँखों में आँसू की तरह उसने
    मुझे बस देखना वो कब मुझे मोती बनाते हैं

    बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...
    बहुत बेहतरीन गजल है

    वीनस केसरी

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  4. उम्दा गज़ल। बहुत दिनों बाद इतनी अच्छी गज़ल पढ़ी है। बधाई।
    हर शेर का अर्थ बहुत गहरा और बेहद अच्छा कहने का तरीका।

    एक बार मत्ले का पहला मिस्रा बहर के लिये जाँच लें।

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  5. bahut hi sunder rachna hai Jasbeer ji..har ek sher bahut gahra hai aur shabdon ka gathan bhi bahut badhiya hai..vakai..bahut dinon main itni acchi gazal padhne ko mili hai.
    badhai!!
    shailja

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  6. bahut achhi gazal ..laga koi mere dil ki baat keh raha hai ..shabd poora drishya mastishk mein hubahu utaar laye hain ...saadhuwad

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  7. बहुत अच्छी ग़ज़ल है जसबीर भाई,
    हर शेर एक से बढ़ कर एक है।
    इतनी उम्दा ग़ज़ल के लिये बधाई।

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