Sunday, May 3, 2009

बेशक रहा न कोई

बेशक रहा न कोई गमखार ज़िन्दगी में
फिर भी खिले से रहना दरकार ज़िन्दगी में

टुकडों में बट गया है अंदर जो आदमी था
कैसे करे किसी से इकरार ज़िन्दगी में

बन काफ्ला चले थे फिर रह गए अकेले
सपनों को कैसे करते साकार ज़िन्दगी में

मएखार मिल गए थे कुश रास्ते में मुझको
बदले नज़र से आए आसार ज़िन्दगी में

ना वो ही बेवफा थे ना मैं ही बेवफा था
ना वकत बेवफा था हर वार ज़िन्दगी में

दिल और मन के अंदर दूरी मिटा सके ना
कितनी बदल गयी है रफ़्तार ज़िन्दगी में

1 comment:

  1. Kya' khu'b likha' hai, Jasaviir Ji. Pran'a'm!

    Gopal Baghel 'Madhu'

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