ज़िन्दगी ऐसे मिली जैसे सजाएं ही मिलें
फिर भी लम्बी उमर हो ऐसी दुआएं ही मिलें
अब सभी रिश्तों में गर्मी सी नज़र आए मुझे
मैंने ये सोचा ही कयों ठंडी हवाएं ही मिलें
दूर जाता हूँ कहीं ख़ुद से निकलकर जब कभी
मुझ को फिर मेरे लिए मेरी सदायें ही मिलें
सब के चेहरों पे बहारें ही बहारें थी खिलीं
जब ज़रा झाँका किसी अंदर खिजाएं ही मिलें
पास अपने हो सभी कुछ तो जियेंगे ज़िन्दगी
पर सभी कुछ में मुझे हंसती क्जायें ही मिलें
Saturday, May 23, 2009
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बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteरचना अच्छी लगी। वाह।
ReplyDeleteबाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी।
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com