वो जब भी चीखता
तो बस होठों तक चीखता
और जब भी रोता
दिल की भीतरी परतों तक रोता
उसकी आंखों की उदासी में
बेचैनी भी थी
और गयी रात का सपना भी
जो रात भर
उसके साथ होली खेलता रहता
उसकी जीभ पर
कई अनकहे शब्द थे
जो उसके अपने ही
खून से लथपथ थे
पर फ़िर भी वो जी रहा था
अपनी खामोशी के क़त्लगाह में
यहाँ और कोई भी नही था
वो ख़ुद भी नही ... ।
Sunday, November 22, 2009
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उलझ कर रह गई इस ताने बाने में। सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति!
ReplyDeletethanks mansi thanks ufo sahib
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