इन्कलाब की और
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आज उसने अपने नीचे से
वो विछोना भी निकाल दीया
जिसपे उसके
पाक जिस्म का
नकशा था ...
देखते ही देखते
वो उसको अपने कन्धों पे रखकर
एक कूड़ेदान में फैंक आया
यह सोच कर
के उसकी उम्र से वो
बहुत छोटा निकला वो ...
फिर उसको अपने धर्म
का ख्याल आया
रवायतो की और ध्यान गया
फ़िर उसने उसको कूड़ेदान से उठाया
और बड़े ही प्रेमपूर्वक उसको जलाया
राख को इकठा कीया
और चल पड़ा
राजधानी के माथे पर
तिलक लगाने के लिए
लोग कहते हैं
वो कभी वापिस नही आया ... ।
Saturday, November 7, 2009
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त्राशद और भावपूर्ण
ReplyDeleteलाजवाब रचना। बहुत-बहुत बधाई
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