Sunday, October 11, 2009

सारी दुनिया में ढूँड कर देखा

सारी दुनिया में ढूँड कर देखा ।
ख़ुद में ही गुलशन-ऐ-दहर देखा ।

सब दीवारों से बांहे निकली थी ,
जब भी मुद्दत के बाद घर देखा ।

आपके दिल से मेरे दिल तीकर ,
इतना लम्बा नहीं सफर देखा ।

जब भी दिए की रोशनी देखी,
अपने माथे के दाग पर देखा ।

उसको पडतें किताब की मानिद,
जिसको भी हमने इक नज़र देखा ।

चार ही लोग आखिरी देखे ,
फिर ना' जसबीर ' हमसफ़र देखा ।

2 comments:

  1. वाह !
    अच्छी ग़ज़ल..........

    ख़ासकर ये शे'र दिल में उतर गया.......

    सब दीवारों से बांहे निकली थी ,
    जब भी मुद्दत के बाद घर देखा ।

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  2. जसबीर भाई, अच्छी लगी यह गज़ल , आपकी जानकारी के लिये ब्लॉग आलोचक मे नई पोस्ट देखे और विचार प्रकट करें

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