Thursday, October 22, 2009

गुमशुदा

उसको जब कविता बारे पुछा
तो वो बोला ...
कविता सोच की छत पे लगी
सीडी के पहले डंडे का नाम है
जिसपे शामिल है
अतीत के अंतिम पडाओ
जिंदगी के बोझिल से फैंसले
और कई आंतरिक पीडा के चिन्ह
जिनपे हर नाप के जूते के निशाँ हैं ... ।

फिर किसी ने उसकी
सुपनमई आंखों से झांककर
वक़्त बारे प्रशन कीया
तो वो बोला
वक़्त घंटाघर पे बैठे
उल्लू का नाम है
जिसकी आँखों में ना जाने
कितने दिनों का संताप है
कितनी रातों की तड़प है
जिनके सहारे
वो वहां बैठा
सब को निहारता रहता है ... ।

फिर किसी ने जिंदगी बारे जानना चाहा
तो वो थोड़ा ऊँचे स्वर में बोला
मेरा ही नाम जिंदगी है
वरतमान के कुछ पलों -छिनों का
आपके अंदर तक चले जाना
और फिर दुखों -सुखों के बलवले
बनकर बाहर बहना
आशाओं के दीप जलाना
और रौशनी पकड़ने की कोशिश करना ... ।

फिर एक बजुर्ग माता बोली
तूँ कुछ झुरडिया बारे भी दस
वो बोला ...
यह आपकी राहों के
अन्तिम मोड़ की तरह होती हैं
तुम इनको अपने में संजो लो
इनमे बहते पसीने को
पूरी गती से बहने दो
जोर जोर से हंसो
और इस पल -छिन
की बात करो ... ।

फिर एक फकीर बाहें फैलाकर बोला

समाधी क्या है ?

वो बोला

समाधी सीड़ी-सीड़ी

चड़ने की कोशिश नहीं

यह तो हर पल के

उस पार जाने का नाम है

हिरदे-चक्र में बंद अपने प्रीतम को

खुली हवाओं में छोड़ने की तड़प है

और हर सरहद के पार

अचेतन से चेतन तक का सफर है ... ।

फिर एक चुप सी औरत

उस के पास आती है

रोते -रोते पूछती है

किसी का देश छोड़ आना

किसी का शहर छोड़ आना

अपने आपसे कितना इन्साफ है ?

वो कुछ नही बोलता

वो थोड़ा घबराती है

फिर उसे निहारती है

और पूछती है

तुम जसबीर हो न ?

वो थोड़ा याद करता है

खामोशी में

जोर जोर से हँसता है

भीड़ की और देखता है

और फिर धीरे से कहता है

'जसबीर'?

वो तो अपने खिलाफ एक

जंग में

गुमशुदा घोषित

कर दीया गया है










No comments:

Post a Comment