कब कहाँ कैसे हुआ कुछ भी पता चलता नहीं
है अँधेरा हर तरफ़ दीया कोई जलता नहीं
आज तेरा वक़्त है तूँ जान ले इतना मगर
वक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं
मैं बड़े से पेड़ के साये तले इक बीज हूँ
जो महज संभावना है पर कभी पलता नहीं
जिसको भी मिलता हूँ लगता है कहीं देखा हुआ
खाक किस किस भेस में मिलती पता चलता नहीं
उम्मर भर पीता रहा हूँ जल्द ही जल जाऊँगा
पर बड़ा कम्बखत दिल हूँ आग में जलता नहीं
मैं सुनूँ आवाज़ तेरी अपने ही अंदर कहीं
पर तूँ अंदर है कहाँ मेरे पता चलता नहीं
तुम जला दोगे मुझे पर शब्द मेरे ना जलें
मैं किताबे जिंदगी का हूँ सफा जलता नहीं
लोग मेरी दोस्ती पे कर रहें हैं फ़खर सा
सब को बस ये भरम है जसबीर तो छलता नहीं
Saturday, August 29, 2009
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आज तेरा वक़्त है तूँ जान ले इतना मगर
ReplyDeleteवक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं
मैं बड़े से पेड़ के साये तले इक बीज हूँ
जो महज संभावना है पर कभी पलता नहीं
खूबसूरत शे जसबीर जी। मजा आ गया आपको पढ़कर।
कब कहाँ कैसे हुआ कुछ भी पता चलता नहीं
ReplyDeleteहै अँधेरा हर तरफ़ दीया कोई जलता नहीं
आज तेरा वक़्त है तूँ जान ले इतना मगर
वक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं
ये पंक्तियाँ बहुत दमदार हैं |
सुंदर जसबीर जी।
ReplyDeleteउम्मर भर पीता रहा हूँ जल्द ही जल जाऊँगा
ReplyDeleteपर बड़ा कम्बखत दिल हूँ आग में जलता नहीं
मैं सुनूँ आवाज़ तेरी अपने ही अंदर कहीं
पर तूँ अंदर है कहाँ मेरे पता चलता नहीं
waah lajawab
kya baat hai bhai
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