Thursday, September 3, 2009

टूटा दिल तो

टूटा दिल तो दिमाग ने सोचा
राख हुए तो आग ने सोचा

इतना गहरा न जख्म दे कोई
जख्म सूखा तो दाग ने सोचा

जब भी जागे मुझे भुझा देंगे
मतलबी सब ,चिराग ने सोचा

जब मेरा घर ही जल गया सारा
तब ही मल्हार राग ने सोचा

सारी दुनिया में ढूंड कर देखा
घर चले तो विराग ने सोचा

अब तो जसबीर बच नही सकता
छोड़ आए सुराग ने सोचा

7 comments:

  1. क्या बात है, वाह!!

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  2. वाह! जसबीर जी। हर शेर उम्दा । खयाल बिल्कुल अनूठे होते हैं आपके।

    एक-दो बातें: क़ाफ़िया जाँच लें एक बार, उर्दू में शायद कहीं कहीं ठीक न हो, पर हिन्दी में ठीक है।

    मुझे बहर में अड़चन आई। हो सकता है मै ग़लत हूँ। एक बार देख लें।

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  3. "टूटा दिल तो दिमाग ने सोचा
    राख हुए तो आग ने सोचा
    इतना गहरा न जख्म दे कोई
    जख्म सूखा तो दाग ने सोचा"
    ये पंक्तिया बहुत अच्छी लगीं...बहुत बहुत बधाई...

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  4. बहुत सुन्दर शेर हैं। आपके शेर छोटे पर बहुत वज़नदार और गहरे होतें हैं। क्या बात कही है:

    जब भी जागे , मुझे बुझा देंगे
    मतलबी सब, चिराग ने सोचा।
    बधाई!!
    शैलजा

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  5. पहकी बार आपके ब्लाग पर आयी हूँ बहुत अच्छा लगा और ये शेर तो लाजवाब है
    जब भी जागे , मुझे बुझा देंगे
    मतलबी सब, चिराग ने सोचा।
    बहुत बहुत शुभकामनायें

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