तूँ ही बाहर है तूँ ही अन्दर है
अब तेरा नाम ही लबो पर है
डूब जाऊँगा मैं कहीं उसमें
तेरी आंखों में जो समुन्दर है
सब से करते रहे मुहब्बत सी
बस यह इल्ज़ाम ही मेरे सर है
दिल में अब और कुश नही अब तो
एक लूटा हुआ सा मन्दिर है
ज़िन्दगी क्या सलूक करती है
सब का अपना यहाँ मुक़दर है
आज जसबीर आयेगा लगता
रोज़ ही सोचता मेरा घर है
Saturday, August 15, 2009
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