Saturday, August 1, 2009

दर्द जब से

दर्द जब से हुआ है अम्बर सा
दिल हमारा हुआ समुन्दर सा

मेरे माथे पे जल रहा दीया
जैसे हो मयकदे में मन्दिर सा

तीर आँखों पे सब के लगते हैं
कौन जीता है पर स्वयंवर सा

तूँ कहाँ ढूंढ़ने मुझे निकला
मैं नहीं हूँ किसी अडम्बर सा

कह रहा है मुझे वो आईने से
अब तूँ लगता नहीं सिकंदर सा

जिंदगी अब के साल यूं गुज़री
हादसों से भरा कैलेंडर सा

4 comments:

  1. मेरे माथे पे जल रहा दीया
    जैसे हो मयकदे में मन्दिर सा

    waah
    gazab !

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  2. सुंदर भावों से भरी ग़ज़ल...वाह

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  3. bahut hi sahi bat bilkul jindagi ka kitab hai aapaki yah rachana.....badhaaee

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