Friday, July 17, 2009

अब तो मैं

अब तो मैं तेरे सहारे भी संभल सकता नहीं
थक गया हूँ दौड़ कर अब और चल सकता नहीं

वो जो इतना चमकते हैं वो चुराते रौशनी
मैं अँधेरा हूँ किसी की हो नक़ल सकता नहीं

एक दिन छुआ छूयाई में उसे भी खो दिया
वो जो कहता था के सूरज आज ढल सकता नहीं

अजनबी बन के ही मिलना जब कभी मिलना उसे
भावनाओ का कभी फिर हो कतल सकता नहीं

उसने राहें छीन लीं हैं पर उसे मालुम नहीं
ख्वाब तो फिर ख्वाब हैं उनको निगल सकता नहीं

एक उलझन से निकलकर तुम सफल हो किस तरह
उलझनों का ताज सिर ऊपर पिघल सकता नहीं

3 comments:

  1. वो जो इतना चमकते हैं वो चुराते रौशनी
    मैं अँधेरा हूँ किसी की हो नक़ल सकता नहीं


    -बहुत उम्दा!! बेहतरीन!!

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  2. अजनबी बन के ही मिलना जब कभी मिलना उसे
    भावनाओ का कभी फिर हो कतल सकता नहीं
    bAHUT HI SUNDAR

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