अब तो मैं तेरे सहारे भी संभल सकता नहीं
थक गया हूँ दौड़ कर अब और चल सकता नहीं
वो जो इतना चमकते हैं वो चुराते रौशनी
मैं अँधेरा हूँ किसी की हो नक़ल सकता नहीं
एक दिन छुआ छूयाई में उसे भी खो दिया
वो जो कहता था के सूरज आज ढल सकता नहीं
अजनबी बन के ही मिलना जब कभी मिलना उसे
भावनाओ का कभी फिर हो कतल सकता नहीं
उसने राहें छीन लीं हैं पर उसे मालुम नहीं
ख्वाब तो फिर ख्वाब हैं उनको निगल सकता नहीं
एक उलझन से निकलकर तुम सफल हो किस तरह
उलझनों का ताज सिर ऊपर पिघल सकता नहीं
Friday, July 17, 2009
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वो जो इतना चमकते हैं वो चुराते रौशनी
ReplyDeleteमैं अँधेरा हूँ किसी की हो नक़ल सकता नहीं
-बहुत उम्दा!! बेहतरीन!!
अजनबी बन के ही मिलना जब कभी मिलना उसे
ReplyDeleteभावनाओ का कभी फिर हो कतल सकता नहीं
bAHUT HI SUNDAR
bahut sundar bhav
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