Saturday, January 28, 2012

दिल का जलना

दिल का जलना तो आज कल कम है ।
फिर भी आँखों में तैरता गम है ।

ज़ख़्म ऐसा मिला मुझे उनसे ,
ज़ख़्म सूखा तो दाग को गम है ।

दिन ढले ही चिराग़  रोशन हो ,
फिर न कहना के रोशनी कम है ।

उम्र भर ढूंढ़ते रहे जिसको ,
उसको मेरी तलाश का गम है ।

अब तो 'खामोश' रह के जी लो तुम
अब तो तेरे  रकीब में दम है ।

Sunday, January 8, 2012

पहचान

मुझे
अभी मेरे बारे
उतना ही पता है
जितना
आपने ..मुझे
मेरी बाबुत
कहा है
और
आपको
मेरे बारे
बस उतना ही इल्म है
जितना
मेने खुद को
आपके आगे रखा है ..........

आपने
मेरे विवहार को
स्वै-प्रगटा कहा
स्वै-विश्लेषण कहा
पर
वो मेरे
अतल की
प्रमाणिकता नहीं
आपने
मेरे शब्दों को ही
वो सब कुछ
समझ लीया
जो
अक्सर
मैं सोचता हूँ .........

आपने
बस
मेरा चिहरा पढ़ पढ़
पता नहीं
...क्या कुछ सोच लीया
...क्या कुछ समझ लीया
पर
मेरी
आत्मा का
कोरा कागज़
कोई नहीं पढ़ सका
लोग आते रहे
........जाते रहे
और
यह कोरा कागज़
सारी उम्र
मुझ को
खुद को
निहारता रहा ........

पर
आज मैं
आप सब को
बताता हूँ
के मैं
अपने ....धरातल में
कही नीचे
बहुत अकेला हूँ
वहां....
किसी के लिए भी
कोई
प्रवेश-द्वार नहीं
कोई रास्ता नहीं ........

मैं
इस अकेलेपन के
धरातल से कही नीचे
एक खज़ाना ढूंढ रहा हूँ
जो......जन्म- जन्म
मैं ही दफनाता रहा
पर
पता नहीं
कब ?कहाँ ? कैसे?
मैं उसका का
अता-पता
भूल गया हूँ.........

मुझे
पता है
जब ...मैंने
वो ..खज़ाना
ढूंढ लीया
तो आप मुझे
उतना जान सकोगे
जितना
मुझे
मेरे बारे पता है ।

Saturday, January 7, 2012

हे कविता

हे कविता
समय के इस अंतराल में
जितना
मैं
बुढापे की और बड़ा
उतनी तुम जवां हुई
मैं
जितना कांपा
जितना टूटा
उतनी तुम साबुत स्थिर रही.....


मेरे
चिहरे पर
जितनी लकीरें उभरी
उतनी तुम
संजीव होकर
उन लकीरों में
समाती रही
मेरे लिए
आकाशी शब्द
ढूंढ ढूंढकर लाती रही .........



हे कविता
अब जब
मैं
फिर तेरे करीब हूँ
तो मुझे लगता है
जाने की कोई
परिभाषा
नहीं होती
अभीलाषा
नहीं होती ।