एक ग़ज़ल
वफ़ादारी निभाकर अब वो कैसे बे-वफ़ा होगा ।
ये उसका दूसरा चिहरा तो बस उसको पता होगा ।
मैं कतरा था समन्दर ने मुझे भी रास्ता देकर ,
कहा था गर किनारे पर गए तो हादसा होगा ।
वो सीने से लगाकर ही जिसे दिन रात रखते थे
मेरे अंदर वही ज़ख्मी परिंदा चीखता होगा ।
मेरी आँखों के अंदर खो गया निकला हुआ आँसू ,
मुझे मालूम है वो जब मिला मोती बना होगा ।
सुना है सर्द मौसम में कभी वो सो नहीं पाता ,
वो पागल आसमां को ओढकर फिर खींचता होगा ।
खुले कपडे पहनकर सो गया मेरा कोई सपना ,
के जैसे उसके सपने का कफ़न मेरा पता होगा ।
कई तूफान उसकी याद का हिस्सा बने होंगे ,
कभी जब ज़र्द पत्ता सबज़ पत्ते देखता होगा ।
अभी "जसबीर" तो अनजान है समझा नहीं खुद को ,
मगर यह ज़िंदगी क्या चीज़ इतना जानता होगा ।