कर गया दर्द मालो- माल मुझे ।
जब भी आया तेरा ख्याल मुझे ।
आज मुद्दत के बाद चुप सा लगा ,
जो था मेरा ही खुद सवाल मुझे ।
मुझ को मालुम है वो मिलेगा नही,
ढूँढना जिसको सालों-साल मुझे ।
ख्वाब के पैर तो नही थे कोई ,
नींद पर पूछे हॉल -चाल मुझे ।
फलसफा जिंदगी का कुछ भी नहीं ,
मौत से ये रहा मलाल मुझे ।
साथ तेरे हैं दोस्तों ने कहा,
पर हकीकत करे सवाल मुझे ।
बीते लम्हों का दर्द बढ सा गया ,
पूछा ' जसबीर' ने जो हाल मुझे।
Saturday, September 19, 2009
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ख्वाब के पैर ही नही थे कोई ,
ReplyDeleteनींद पर पूछे हॉल -चाल मुझे ।
बिना पैरो का ख्वाब बहुत अच्छा है.
आज मुद्दत के बाद चुप सा लगा
ReplyDeleteजो था लगता मेरा सवाल मुझे ।
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ, दर्द और बढे जिससे कालजयी रचनाओं का जन्म हो, बहुत सुन्दर
भाई जसबीर कालरवि जी,
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल बाँच कर सुकून मिला..........
यों तो मुकम्मल ग़ज़ल ही आला दर्जे की शायरी है लेकिन कुछ शे'र तो " वाह वाह " क्या बात है ?
फलसफा जिंदगी का फेल हुआ ,
मौत से ये रहा मलाल मुझे ।
ये शे'र तो मुझे बहुत ही भा गया.............
आपको बधाई !
बेह्तरीन लिखा है………………………बधाई।
ReplyDeletebehatreen rachna
ReplyDeleteवाह! उम्दा शायरी। "फ़ेल से आपका मतलब fail है?"
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