Saturday, September 19, 2009

कर गया दर्द

कर गया दर्द मालो- माल मुझे ।
जब भी आया तेरा ख्याल मुझे ।

आज मुद्दत के बाद चुप सा लगा ,
जो था मेरा ही खुद सवाल मुझे ।

मुझ को मालुम है वो मिलेगा नही,
ढूँढना जिसको सालों-साल मुझे ।

ख्वाब के पैर तो नही थे कोई ,
नींद पर पूछे हॉल -चाल मुझे ।

फलसफा जिंदगी का कुछ भी नहीं ,
मौत से ये रहा मलाल मुझे ।

साथ तेरे हैं दोस्तों ने कहा,
पर हकीकत करे सवाल मुझे ।

बीते लम्हों का दर्द बढ सा गया ,
पूछा ' जसबीर' ने जो हाल मुझे।

6 comments:

  1. ख्वाब के पैर ही नही थे कोई ,
    नींद पर पूछे हॉल -चाल मुझे ।
    बिना पैरो का ख्वाब बहुत अच्छा है.

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  2. आज मुद्दत के बाद चुप सा लगा
    जो था लगता मेरा सवाल मुझे ।

    बहुत बढ़िया पंक्तियाँ, दर्द और बढे जिससे कालजयी रचनाओं का जन्म हो, बहुत सुन्दर

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  3. भाई जसबीर कालरवि जी,
    आपकी ग़ज़ल बाँच कर सुकून मिला..........
    यों तो मुकम्मल ग़ज़ल ही आला दर्जे की शायरी है लेकिन कुछ शे'र तो " वाह वाह " क्या बात है ?

    फलसफा जिंदगी का फेल हुआ ,
    मौत से ये रहा मलाल मुझे ।

    ये शे'र तो मुझे बहुत ही भा गया.............

    आपको बधाई !

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  4. बेह्तरीन लिखा है………………………बधाई।

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  5. वाह! उम्दा शायरी। "फ़ेल से आपका मतलब fail है?"

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