Saturday, April 25, 2009

मएखाना और सिर

वो मएखाने में आया

अपना सिर मेज़ पे रखा

सेवादार को हुकुम दिया

ग्लास्सी उठाई ।

एक ग्लास्सी

दो

तीन

फिर पता नही कितनी ...

जब उसको लगा के उसका सीना

और भी ताक़तवर

हो गया है

तो उसने मेज़ पर

इधर उधर हाथ मारा

और मेज़ पर पड़ा

किसी और का सिर

उठाकर

अपने घर लौट गया

2 comments:

  1. जसबीर जी,

    कविता अच्छी लगी। "सिर" का प्रयोग अच्छा लगा।
    महखाने से मतलब मयखाने से है।

    सादर,

    अमरेन्द्र

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