Sunday, April 1, 2012

ग़ज़ल

मैं चाहता हूँ मेरी कोई ग़ज़ल उस साज तक जाये ।।
जिसे सुनकर कोई मेरी ही दी आवाज़ तक आये ।।

मैं उसको मंजिल-ऐ - मक़सूद की जानब तो ले जाऊं ,
वो सब कल छोड़कर गर आज मेरे आज तक आये ।

मिला मुझ को नहीं कोई सिरा कैसे सफ़र करता ,
वो हर अंजाम से पहले नये आगाज़ तक आये ।

मुझे लगता है फिर तो हम भी वो आकाश छु लेंगे ,
तूं अप्पने पंख लेकर गर मेरी परवाज़ तक आये ।

मेरी किस्मत मेरा बिरहा मेरे ही सामने रोये ,
कोई लाखों में यूं बिरहा के तख्तो-ताज तक जाये ।

उने "जसबीर "अब तो मौत से डर ही नहीं लगता ,
जो पल पल के सफर में ज़िन्दगी के राज़ तक आये ।

5 comments:

  1. बहुत बढिया गज़ल है बधाई।

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  2. मैं उसको मंजिल-ऐ - मक़सूद की जानब तो ले जाऊं ,
    वो सब कल छोड़कर गर आज मेरे आज तक आये ।

    बहुत बढ़िया जसबीर जी!
    सुमन कुमार घई

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  3. main uske bulane se, saahil pe chalaa aaoon.chupchap kinare pe, koi seep vo rakh jaye...

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  4. मिला मुझ को नहीं कोई सिरा कैसे सफ़र करता ,
    वो हर अंजाम से पहले नये आगाज़ तक आये ।

    Bahut khoob.

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  5. wah koi to mila jis ki rchna padh kar apni bhi mehnat sarthak lagi...aabhar sunder rchnaon ke liye.

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