मैं चाहता हूँ मेरी कोई ग़ज़ल उस साज तक जाये ।।
जिसे सुनकर कोई मेरी ही दी आवाज़ तक आये ।।
मैं उसको मंजिल-ऐ - मक़सूद की जानब तो ले जाऊं ,
वो सब कल छोड़कर गर आज मेरे आज तक आये ।
मिला मुझ को नहीं कोई सिरा कैसे सफ़र करता ,
वो हर अंजाम से पहले नये आगाज़ तक आये ।
मुझे लगता है फिर तो हम भी वो आकाश छु लेंगे ,
तूं अप्पने पंख लेकर गर मेरी परवाज़ तक आये ।
मेरी किस्मत मेरा बिरहा मेरे ही सामने रोये ,
कोई लाखों में यूं बिरहा के तख्तो-ताज तक जाये ।
उने "जसबीर "अब तो मौत से डर ही नहीं लगता ,
जो पल पल के सफर में ज़िन्दगी के राज़ तक आये ।
Sunday, April 1, 2012
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बहुत बढिया गज़ल है बधाई।
ReplyDeleteमैं उसको मंजिल-ऐ - मक़सूद की जानब तो ले जाऊं ,
ReplyDeleteवो सब कल छोड़कर गर आज मेरे आज तक आये ।
बहुत बढ़िया जसबीर जी!
सुमन कुमार घई
main uske bulane se, saahil pe chalaa aaoon.chupchap kinare pe, koi seep vo rakh jaye...
ReplyDeleteमिला मुझ को नहीं कोई सिरा कैसे सफ़र करता ,
ReplyDeleteवो हर अंजाम से पहले नये आगाज़ तक आये ।
Bahut khoob.
wah koi to mila jis ki rchna padh kar apni bhi mehnat sarthak lagi...aabhar sunder rchnaon ke liye.
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