चुप -1
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चुप की
अपनी
आवाज़ होती है
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चुप की
अपनी
पहचान होती है
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जब भी
कभी .....हम
चुप को बोलते हैं
तो ...
अपने ही भीतर
कोई गिरह
खोलते हैं .
चुप -२
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शब्द
जब
यात्रा पर होता
तो
कई तरंगों से
घिरा होता
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हवा
पानी
आग
धरती
आकाश
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शब्द
हमेशा
छोर के साथ चलता
ना जाने
कितनी भाषाओँ में ढलता
.........
शब्द की
उर्जा
पूरे
ब्रहमांड में
पडी होती
.........
शब्द
जहाँ रुकता
वहां
चुप
खड़ी होती .
वाह जी बढ़िया लिखा है.
ReplyDeleteबहुत खूब ....
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