Saturday, April 21, 2012

         चुप -1
         ===
       चुप की  
         अपनी 
       आवाज़ होती है
        -------
       चुप की 
       अपनी 
       पहचान होती है 
       ..........
      जब भी 
      कभी .....हम 
      चुप को  बोलते हैं 
      तो ...
      अपने ही भीतर 
     कोई गिरह
     खोलते हैं .

चुप -२
=====
शब्द 
जब 
यात्रा पर होता 
तो 
कई तरंगों से 
घिरा होता 
--------
हवा 
पानी 
आग
धरती
आकाश
---------
शब्द 
हमेशा 
छोर के साथ चलता 
ना जाने 
कितनी भाषाओँ में ढलता 
.........
शब्द की
उर्जा 
पूरे
 ब्रहमांड में 
पडी होती
.........
शब्द 
जहाँ रुकता 
वहां 
चुप 
खड़ी होती . 
 
    
  

2 comments: