जब से
तब से सारे सहारे गर्दिश में ।
मैं तो कतरा हूँ उस समुन्दर का ,
जिसके सारे किनारे गर्दिश में ।
दूर तक अब कोई नही दिखता,
मैं ही मैं को पुकारे गर्दिश में ।
सब की आँखों पे खाक के परदे ,
कौन किसको निहारे गर्दिश में ।
ज़िन्दगी मौत जब गले मिलती ,
मिल ही जाते शरारे गर्दिश में ।
याद 'जसबीर ' उम्र भर रहते ,
जो भी लम्हे गुजारे गर्दिश में ।
वाह बहुत खूब ...ये गर्दिश ही गर्दिश ..
ReplyDeletewah sunadr vivran..
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