Sunday, January 8, 2012

पहचान

मुझे
अभी मेरे बारे
उतना ही पता है
जितना
आपने ..मुझे
मेरी बाबुत
कहा है
और
आपको
मेरे बारे
बस उतना ही इल्म है
जितना
मेने खुद को
आपके आगे रखा है ..........

आपने
मेरे विवहार को
स्वै-प्रगटा कहा
स्वै-विश्लेषण कहा
पर
वो मेरे
अतल की
प्रमाणिकता नहीं
आपने
मेरे शब्दों को ही
वो सब कुछ
समझ लीया
जो
अक्सर
मैं सोचता हूँ .........

आपने
बस
मेरा चिहरा पढ़ पढ़
पता नहीं
...क्या कुछ सोच लीया
...क्या कुछ समझ लीया
पर
मेरी
आत्मा का
कोरा कागज़
कोई नहीं पढ़ सका
लोग आते रहे
........जाते रहे
और
यह कोरा कागज़
सारी उम्र
मुझ को
खुद को
निहारता रहा ........

पर
आज मैं
आप सब को
बताता हूँ
के मैं
अपने ....धरातल में
कही नीचे
बहुत अकेला हूँ
वहां....
किसी के लिए भी
कोई
प्रवेश-द्वार नहीं
कोई रास्ता नहीं ........

मैं
इस अकेलेपन के
धरातल से कही नीचे
एक खज़ाना ढूंढ रहा हूँ
जो......जन्म- जन्म
मैं ही दफनाता रहा
पर
पता नहीं
कब ?कहाँ ? कैसे?
मैं उसका का
अता-पता
भूल गया हूँ.........

मुझे
पता है
जब ...मैंने
वो ..खज़ाना
ढूंढ लीया
तो आप मुझे
उतना जान सकोगे
जितना
मुझे
मेरे बारे पता है ।

2 comments:

  1. अकेलेपन से लड़ते शब्द

    ReplyDelete
  2. bahut hi sashakt kavita Jasbeer ji..

    " apnaa aap dhoondh laane ko vikal sada yah mun rahta hai,
    aur anidrit jagat vaksh per, nisha-diwas vyakul rahta hai
    tum mujhko kya jaan sakoge
    Chipa khudi mein, khudi chupa kar kasturi mrig dhoondh raha hai
    .....
    shesh phir

    ReplyDelete