मुझे अब आ गया है ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहना ।
जहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना ।
मैं इक कतरा चला हूं मुस्करा कर मापने सागर ,
मेरी दीवानगी साहिल को मेरी अलविदा कहना ।
जो दरिया गुनगुनाता है नदी जब राग सा छेड़े,
उसे जा के समुन्दर की ज़रा आबो-हवा कहना।
मैं खुद अप्पना पता बनकर ही रहता हूं कहीं खुद में ,
कहाँ जायज़ है फिर मेरा खुदी को लापता कहना ।
बिना मांगे तुम्हे सबकुछ यहाँ कुदरत से मिलता है ,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।
बड़ी मुश्किल से माथे की लकीरों को बचाया है ,
बहुत मुश्किल था पत्थर को यूँ अपना आईना कहना।
किसी के भी लिए दिल में कभी रखता नहीं रंजिश ,
मुझे आता नहीं जसबीर खुद को बे-बफा कहना ।
Sunday, March 27, 2011
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Jasbirji aapki gazal bahut achchhi hai aap likhte rahiye blog ki duniya me nam kamaye. Gopal Tiwari hasya-vangya.blogspot.com
ReplyDeleteहिन्दी के लिये प्रयास, बहुत अच्छा
ReplyDeletehttp://www.prativad.com
बहुत ही बढ़िया |
ReplyDeleteकृपया मेरी भी रचना देखें और ब्लॉग अच्छा लगे तो फोलो करें |
सुनो ऐ सरकार !!
और इस नए ब्लॉग पे भी आयें और फोलो करें |
काव्य का संसार
बहुत सुन्दर रचनाएं ..मन को छू जाने वाली
ReplyDeleteभ्रमर ५
लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।
aap achchha kah rahe the. aapke chup ho jane ki vajah kya rahi?
ReplyDeletejasbeer ji achchi kavitaye or gajle dekhi aapko badhai
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