ग़ज़ल
चाँद से बस ये गिला है I
ठोकरें खाकर मिला है I
याद आता ही नहीं वो ,
ये दिया उसने सिला है I
लाश भवरे की मिली है ,
फूल जब- जब भी खिला है I
तेज़ हैं यादों के नश्तर ,
बस ये ज़ख्मों को गिला है I
ख़ाब में जो कशमकश है ,
सोच का ही सिलसिला है I
ज़िंदगी 'खामोश ' तनहा
साथ बेशक काफिला है I
चाँद से बस ये गिला है I
ठोकरें खाकर मिला है I
याद आता ही नहीं वो ,
ये दिया उसने सिला है I
लाश भवरे की मिली है ,
फूल जब- जब भी खिला है I
तेज़ हैं यादों के नश्तर ,
बस ये ज़ख्मों को गिला है I
ख़ाब में जो कशमकश है ,
सोच का ही सिलसिला है I
ज़िंदगी 'खामोश ' तनहा
साथ बेशक काफिला है I
bahut khub
ReplyDelete