Saturday, June 22, 2013

GAZAL .......चाँद से

           ग़ज़ल

चाँद  से बस  ये गिला   है  I
ठोकरें  खाकर   मिला   है  I

याद  आता   ही  नहीं वो ,
ये  दिया  उसने  सिला  है  I

लाश भवरे की मिली है ,
फूल जब- जब भी खिला है I

तेज़ हैं यादों  के  नश्तर ,
बस ये ज़ख्मों को गिला है I

ख़ाब में जो कशमकश  है ,
सोच का ही सिलसिला  है  I

ज़िंदगी 'खामोश ' तनहा
साथ  बेशक  काफिला  है I

     

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