ग़ज़ल
मुझको आँखों में तुम बसाओ तो ।।
मुझको मुझसे कभी मिलाओ तो ।।
मेरे हाथों पे हाथ रखो तो ,
कुछ लकीरें नई बनाओ तो ।
होश ही होश फिर रहे मुझको ,
जाम पे जाम गर पिलाओ तो ।
मेरे मन में लिखा पढ़ो तुम भी ,
रिशते ऐसे कभी निभाओ तो ।
खुद से चोरी मुझे भी देखो तो ,
और फिर खुद को भूल जाओ तो ।
शब्द 'खामोश' तो नहीं होते
यूं ही मुझ को कभी बुलाओ तो ।
मुझको आँखों में तुम बसाओ तो ।।
मुझको मुझसे कभी मिलाओ तो ।।
मेरे हाथों पे हाथ रखो तो ,
कुछ लकीरें नई बनाओ तो ।
होश ही होश फिर रहे मुझको ,
जाम पे जाम गर पिलाओ तो ।
मेरे मन में लिखा पढ़ो तुम भी ,
रिशते ऐसे कभी निभाओ तो ।
खुद से चोरी मुझे भी देखो तो ,
और फिर खुद को भूल जाओ तो ।
शब्द 'खामोश' तो नहीं होते
यूं ही मुझ को कभी बुलाओ तो ।
रिश्ते बने ही निभाने के लिए हैं
ReplyDeletesunder abhivykti !
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