जब से मैं तेरे साज़ की चुप हूँ ।
तब से अपनी आवाज़ की चुप हूँ ।
मुझ को मालूम नहीं कहाँ जाना ,
इस लिए हर आगाज़ की चुप हूँ ।
शब्द होते तो अर्थ मिल जाते ,
मैं तो उम्र-ऐ -दाराज़ की चुप हूँ ।
तुम ने वादा कोई निभाया था ,
मैं तेरे उस लिहाज़ की चुप हूँ ।
मैं ना 'सुकरात' हूँ ना' सरमद 'हूँ ,
मैं तो अपने ही राज़ की चुप हूँ ।
मैं तो ' जसबीर ' जीत पाया ना ,
इस लिए हर मुहाज़ की चुप हूँ ।
Saturday, February 4, 2012
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very nyc..
ReplyDeleteगज़ब के शेर हैं सभी के सभी .....
ReplyDeleteतुम ने वादा कोई निभाया था ,
मैं तेरे उस लिहाज़ की चुप हूँ ।
मैं ना 'सुकरात' हूँ ना' सरमद 'हूँ ,
मैं तो अपने ही राज़ की चुप हूँ ।.................वाह बहुत बढिया