Saturday, April 10, 2010

मेरे अंदर जो औरत है

मेरे अंदर जो औरत है
बिलकुल तुम्हारे जैसी है
इसलिए शायद
वो तुम से मिलने के लिए बेचैन है
मैं वार वार उसे मिलाने के लिए
तेरी और खींचा चला आता हूँ
लेकिन हर वार उसकी तड़प को
दो- गुना करके
अपने ही अंदर
कहीं और गहरा पाता हूँ ....

तुम मुझे जब पहली वार मिली
तो मुझे लगा
जैसे मैं तुम्हे बहुत पहले से
जानता हूँ ...पहचानता हूँ
दूसरी वार मुझे लगा
जैसे कोई अनजानी धरती
हमारे बीच है
तीसरी वार हमने कोशिश करके
एक सांझी धरती ढूंढ ली थी
जिस पर हम तीनो खड़े हो सकते थे .....

फिर अचानक... एक दिन
तुम्हारे अंदर का आदमी
मुझे मिलने आया
सच कहूं ...
वो मुझे बिलकुल नहीं जानता था
वो मुझे बिलकुल नहीं पहचानता था
मैं उसके जैसा कहीं से था भी नहीं
वो लौट गया था शायद
या तुमने उसे अपने ही अंदर
कहीं बन्द कर लिया था .....

अब ...जब भी हम मिलते हैं
तो हम त्रिकोण के मिलन -बिन्दुओं पर खड़े होकर
एक दूसरे को निहारते हैं
एक बिंदु ...
दूर कहीं बहुत दूर
हमारे निकट आने की कोशिश में
और भी सदीओं दूर चला जाता है
उस वकत ...
हमारे नीचे की सांझी धरती में
कुछ रेखाए उभर आती है .... ।

लेकिन अब ...
जब मैं जागती आँखों से देखता हूँ
तो पाता हूँ .....
के मेरे अंदर जो औरत है
बिलकुल तुम्हारे जैसी नहीं है ...
और तुम्हारे अंदर जो आदमी है
कितना मुझसे मिलता है... ।

1 comment:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    bahut khub

    http://kavyawani.blogspot.com/

    shekhar kumawat

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