ज़िन्दगी इक हबाब जैसी है
फिर भी दरिया के ख़्वाब जैसी है
मै तो घंटों ही रोज़ पढ़ता हूँ
याद तेरी किताब जैसी है
चाँद आधा भी क्या क़यामत है
फिर घटा भी हिजाब जैसी है
उम्र-भर का सवाल था मेरा
पर तेरी चुप जवाब जैसी है
हमको मालूम नहीं वफ़ा तेरी
बेवफ़ाई ख़िताब जैसी है
ज़िन्दगी उन को रास आती है
बात जिनमें उक़ाब जैसी है
तेरे हाथों में ज़हर भी मुझ को
लग रही कुछ शराब जैसी है
अब कोई शोर न सुनाई दे
दिल की धड़कन रबाब जैसी है
Monday, February 9, 2009
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